बुधवार, 25 नवंबर 2009

November, 2009


मज़ा ही मज़ाएक लडका साइकिल पर तेज़ी से आ रहा था। एक नानी से उसकी टक्कर हो गयी। दोनों गिर पडे। नानी : (उठकर) "बेटा लो, यह एक रुपया।" लडका :" क्यों, किस बात के लिए?" नानी : "अंधों को भीख देना बडे पुण्य का काम है।" एक व्यक्ति ने अपने दूधवाले से झल्लाकर कहा : "तुममें और गाय में केवल यह अंतर है कि वह शुद्ध दूध देती है और तुम पानी मिलाकर । " दूधवाले ने उत्तर दिया : "नहीं जनाब, एक अंतर और भी है - मैं उधार देता हूँ, गाय उधार नहीं देती।"टीचर ने मोनू से कहा : "मोनू, इस बार तुम्हें 80% अंक लाने हैं ।" मोनू बोला : "टीचर, इस बार मैं 80% नहीं, 100% अंक लाऊँगा ।" टीचर बडी हैरान हुई : "तुम क्यों मज़ाक कर रहे हो?" मोनू : "पहले मज़ाक शुरू किसने किया था?"एक देहाती रेलगाडी में सफर कर रहा था । टिकट चैकर आया, उसने देहाती से टिकट माँगा। इस पर वह बोला - "ई टिकिटवा का होता है?" टिकट चैकर ने उसे टिकट दिखाते हुए कहा - "यह होता है टिकट। यह पैसे देकर खरीदा जाता है।" इस पर देहाती बोला - "काहे को खरीदा जाता है, का हमरे पास दूसरा सामान नहीं है जो हम ये इतना-सा टिकिटवा खरीदेंगे ?" टिकट चैकर ने अगले स्टेशन पर ही उसे गाडी से नीचे उतार दिया। अब वह देहाती उसी रेल-पटरी पर पैदल चलने लगा जिस पर गाडी चल रही थी। इंजन ड्राईवर परेशान। वह लगातार सीटियों पर सीटियाँ मारे जा रहा था। थोडा आगे बढने पर देहाती बोला - "अब चाहे जितनी सीटी मार-मारकर हमका बुलाओ, हम तेरी गाडी में नहीं आएँगे॥"स्कूल के परीक्षा में बैठे एक छात्र ने दूसरे से कहा : "इस दुनिया में ऐसे लोग भी बहुत है, जो बेवकूफों की भी नकल करने लगते हैं ।" "क्यों, क्या कोई तुम्हारी नकल कर रहा था ? " - दूसरे छात्र ने पूछा ।कुछ चींटियाँ एक तालाब में नहा रही थीं। अचानक एक हाथी तालाब में आ कूदा। लहर में सारी चींटियाँ किनारे पर जा गिरे। सिर्फ एक चींटी हाथी के ऊपर चढ गया। किनारे पर खडे चींटियों ने एक ही आवाज़ में क्या चिल्लाया? उत्तर: "अरे साथी, कुचल-दबाके मार डाल उसे !!!" दादा ने पूछा : "बेटा तुम रात में कितने बजे तक पढे थे?" बेटा : "दादाजी, मैं दो बजे रात तक पढता रहा था।" दादा : "लेकिन बेटा, बिजली तो रात 10 बजे से 2 बजे तक बंद थी?" बेटा : "दादाजी, आपने ही तो कहा था कि एकाग्रचित्त होकर पढना चाहिए, इसी से पता नहीं चला कि कब बिजली चली गई?"
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पत्नी (कमल कुमार जी)घर के बाहरतुम्हारी नामपट्टी हैभीतर…कुर्सी हैं…मेज़ हैं…सोफा हैं…कारपेट हैं…दीवारें हैं…छतें हैं…सब कुछ बहुवचन में -एकवचन में - मैं ।पति अफसर हैकलक्टर न सहीपर अफसर हैअफसर तो अफसर होता हैक्योंकि जंगल जंगल होता है।तुम कारपेट की तरहबिछी रहो,परदे की तरहलटकी रहोशेंडलियर-सीउजागर रहोफ्रेम में जडी अनुक्रृअति(किसी बडे कलाकार की)बढाती रहोड्राइंग-रूम की शोभा।तुम कितनी सुशील होधर्मपरायण होमेरी पत्नी होदुधारू गाय हो…।हमारे घर की अचेतन वस्तुएँ : कुर्सी, मेज़, सोफा, कारपेट, दीवारें, छतें, परदे और अंत में झाडू।जंगल शब्द से मतलब : शेर जंगल का राजा है, वह अपनी मनमानी करने में हिचकता नहीं। पति भी अपने घर में मनमानी करता है। पत्नी सब कुछ सहकर चुप रहती है। वह अपने पति के लिए काम ही करती है। पति घर को जंगल जैसा समझता है।औरत की तुलना कारपेट और परदे से क्यों किया गया है? : हम कारपेट और परदे घर की शोभा बढाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। कारपेट ठंडक में हम्हें सुख प्रदान करती है। खिडकियों पर परदे इसलिए टाँकते हैं कि दूसरे हमारे घर के अंदर झाँककर न देख सकें। कमल कुमार जी के अनुसार घर में पत्नी भी पति को सुख देने के लिए है। दूसरों के सामने पति कहता है कि यह मेरी पत्नी है, परंतु घर में पत्नी को पति जैसा समान स्थान नहीं मिलता । वह पति के लिए काम करनेवाली रह जाती है।नारी केवल ड्राइंग रूम की शोभा बढानेवाली चीज़ है? कभी भी नहीं । नारी का नर जैसा समान स्थान है, चाहे वह घर हो या दुनिया। नारी और नर को मिलकर ही अपने जीवन को आगे बढाना है, उसे उजागर करना है, उसकी शोभा बढाना है।दुधारू गाय और पत्नी से क्या संबंध है? कमल कुमार जी की राय में पति सोचता है कि उसको सुख देने के लिए ही पत्नी है।दुनिया में दहेज प्रथा है। पति को जो कुछ चाहिए, वह सब पत्नी को देना पडेगा। गाय हमें दूध देती है। हर दिन गाय से हम यह प्रतीक्षा करते हैं कि वह ज़्यादा से ज़्यादा दूध दें। पर एक दिन ऐसा होगा कि वह दूध देना बंद कर देती है। तब उसकी हालत क्या होगी? लोग उसे लेकर क्या करेंगे? ज़रूर उसे बिकने की सोच में पड जाएँगे।उसी प्रकार आज हमारी माँओं की स्थिती भी ऐसी है। इस बुरे विचार से लोगों को बचाने के लिए हम क्या-क्या करें? सूचना पट तैयार करें, नारियों से हो रही अत्याचार के प्रतिशोध में नारे लगाकर अभियान चलाएँ, नुक्कड नाटक पेश करें…वर्तमान समाज और स्त्री : माँ, माँ होती है। माँ को सिर्फ नारी या स्त्री समझना ठीक नहीं है। आज के समाज में स्त्री का स्थान क्या है? स्त्री हमारे सामने माँ, बहन, पत्नी, बेटी, नानी-दादी के रूप में प्रकट है। नारी की ओर समाज का दृष्टिकोण क्या है? कमल कुमार जी की कविता में पत्नी का ऐसा चित्र है, जो दुधारू गाय की तरह हमारे सामने प्रस्तुत है। पर ऐसा ही सोचना उचित नहीं है। हमारे सामने ऐसे अनेक सपूत है, जैसे मदर तेरेसा, इंदिरा गाँधी, , कल्पना चावला, किरण बेदी, शैख हसीना, सुगतकुमारी आदि जिन्होंने कर दिखाया है कि वे सिर्फ घरेलू काम करने के लिए ही नहीं, पर सारी दुनिया को सही रास्ते पर चलाने के लिए जन्मे हैं। वर्तमान समाज में नारी का नर के समान ही स्थान है।(राजेश पुतुमना जी से तैयार किया गया अनुकूलित रूप पढने के लिए क्लिक करें…)
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15 November, 2009

मलयालम के प्रमुख कवयित्री सुगतकुमारी जी 2009 के एषुत्तच्छन पुरस्कार के लिए चुनी गयीं।ये मलयालम साहित्य को दे रही वरदानों को मद्धे नज़र रखते हुए ये विशिष्ट पुरस्कार इनको दिया जा रहा है। केरल के मौन घाटी जंगल की संरक्षण के लिए सुगतकुमारी जी ने जो कदम उठाये हैं, वह मानव और प्रकृति के बीच सुसंबंध का एक नया मोड दे दिया है। समाज में पीडा से तरे हुए स्त्रियों की संरक्षण के लिए भी ये जो कर्म कर रही हैं, वह सब भारत की नारी का उज्वल चित्र हमारे सामने ला रहा है। पिछले आधी शती से ये मलयालम के कविता साहित्य को संपन्न कर रही हैं।आइए उनकी एक कविता पढें … रात की बरसात ...
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14 November, 2009

आज के बच्चे क्या - क्या करते हैं , उनकी दशा कैसी है, एक नज़र । ((presentation देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।))
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चाचाजी की जीवनयात्रा में से…कुछ अनोखे पल…1989 - नवंबर 14 को मोतीलाल और स्वरूपरानी के पुत्र के रूप में जन्म।1905 - माता पिता के साथ इंग्लैंड गए । 1910 - केंब्रिड्ज विश्व विद्यालय से स्नातक की उपाधी प्राप्त की।1912 - भारत लौट आये। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में भर्ती। 1916 - कमला कौल से शादी, लखनौ कोंग्रेस में गाँधीजी से मुलाकात। 1917 - नवंबर 19 को पुत्री इंदिरा का जन्म।1919 - पिताजी के साथ मिलकर 'इंडिपेन्डेन्ड' समाचार पत्र की शुरुआत।1920 - उत्तर प्रदेश के प्रताप नगर जिले में किसान अभियान चलाए।1921 - फैसाबाद के किसान अभियान में भाग लेकर जेल में पाँच महीने की कैद ।1922 - मई 11 को फिर से गिरफ्तारी, लखनाउ जेल में। 1923 - जनवरी में जेल से मुफ्त।1924 - कोंग्रेस के नेता बनने के कारण फिर से गिरफ्तार और राज्य छोडने की आज्ञा।1929 - लाहोर के योग में कोंग्रेस के अध्यक्ष के रूप में।1930 - नमक कानून के खिलाफ काम करने के लिए फिर से गिरफ्तार। 1931 - उत्तर प्रदेश के किसान अभियान में भाग लेने पर गिरफ्तारी और दो साल के लिए जेल।1934 - कल्कत्ता भाषण के लिए दो साल के लिए फिर से जेल में ।1935 - आत्मकथा की पूर्ती की।1936 - फरवरी 28 को कमला जी का निधन। आत्मकथा का प्रकाशन।1940 - सत्याग्रह करने के लिए गिरफ्तारी। 1942 - 'Quit India' आन्दोलन में भागीदारी। 1944 - 'भारत की खोज में' रचना की पूर्ती की।1947 - भारत के प्रथम प्रधान मंत्री के रूप में।1948 - 'भारत की खोज में' रचना का प्रकाशन। 1951 - कश्मीर समस्या में ब्रिटन के खिलाफ सख्त अवाज़।1954 - 'पंचशील' तत्वों का प्रकाशन।1957 - ट्रोंबे में भारत का पहला नाभिकीय कारखाना की स्थापना।1961 - गोआ को भारत में जोड लिया। 1962 - आनमती में पहला सार्वजनिक तेल रिफाइनरी की स्थापना। 1964 - मई 27 विदाई।(अवलंब : मातृभूमी समाचार पत्र )
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13 November, 2009

एक और ...
तेरा साई तुझ में, ज्यों पुहुपन में बास ।कस्तूरी का मिरग ज्यों, फिरि फिरि ढूँढै घास ॥फूल महकते हैं। उनकी महक तो उनके अंदर से ही आती है। इस प्रकार हमारा ईश्वर हमारे अंदर ही वास करता है। कस्तूरी मृग यह नहीं जानती है कि कस्तूरी उसकी नाभि में है। वह कस्तूरी की खोज में इधर उधर ढूँढती फिरती है और हिंस्र जंतुओं की पकट में पड जाती है। हम मानव भी ईश्वर की खोज में मंदिरों में जाते हैं और पूजा के रूप में हमारा सब लुटेरों के हाथ गंवा बैठते हैं।
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और कुछ विश्लेषणात्मक टिप्पणियाँ…मुंड मुडाए हरि मिलै, सब कोई लेय मुडाय ।बार - बार के मुँडते, भेड न बैकुंड जाए ॥ईश्वर का वरदान प्राप्त करने के लिए लोग बाल मूंडते हैं। उनका विश्वास यह है कि ऐसा करने से मरने के बाद वे वैकुँठ यानि ईश्वर के पास जा पाएँगे। भेडों को हम हर साल पूरा शरीर मूंडते हैं। क्या भेड भी वैकुँठ जाएँगे? ईश्वर विश्वास के प्रति अर्थहीन काम करने से कुछ नहीं मिलता है।
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10 November, 2009

विश्लेषणात्मक टिप्पणी …
संत कबीर दास जी
"पाहन पूजै हरि मिलै, तो मैं पूजूँ पहार ।
ताते या चाकि भलि, पीस खाय संसार ॥"लोग पत्थर की पूजा करते हैं । उनका विश्वास है कि ईश्वर की मूर्ति पत्थर में बनाकर पूजा करने से उनको ईश्वर से वरदान मिल जाएगा। अगर ऐसा है तो मैं पर्वत की पूजा करूँगा। ईश्वर की मूर्ति बनानेवाली पत्थर तो पर्वत से ही आता है। इस तरह पत्थर की पूजा करने से क्या लाभ? हम को चक्की की पूजा ही करनी चाहिए, क्यों कि चक्की ही संसार के लोगों की पेट भरने के लिए काम करती है।
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08 November, 2009

पटकथा कैसे तैयार करें ?
जैनी कहानी की पटकथाघटनाएँ : जैनी की प्रार्थना।स्थान, समय : जैनी की झोंपडी, रात का समय ।पात्र : जैनी, पाँच बच्चे ।पात्रों की आयु, वेशभूषा :जैनी - 40 साल की औरत, साधारण मछुआरों का वेश । बच्चे - 10 साल तक के पाँच बच्चे, चादर से ओढे, सिर्फ चेहरा दिखाई पडे।जैनी का आत्मगत : प्रार्थना करती है।व्यवहार और भाव : दुख भरा, गरीबी।((रात का समय। सागर तट की झोंपडी। वातावरण में लहरों की आवाज़। चूल्हे में जलते बुझते कोयले। दीवार पर मछली जाल। सादी शेल्फ पर घरेलू बर्तन-भांडे। एक बडा पलंग। पुरानी बेंचों पर गद्दा। गद्दे पर चादर लिपटाए पाँच बच्चे। जैनी नीचे बैठी है।))जैनी उठती है। शेल्फ से एक किरासन का दीया लेकर उसे जलाती है और नीचे रखती है। प्रकाश फैलता है। अब सब कुछ साफ साफ दिखाई देता है। जैनी दीवार पर टंगे जालों की जाँच करती है। एक को फटा पाकर उसे लेती है। एक हाथ से जाल पकडकर दूसरे हाथ से शेल्फ से सुई लेती है। दीया के पास आकर बैठती है। जाल लेकर सीने लगती है। पल-पल मे बच्चों को और दरवाज़े की ओर भी देखती है। लहरों की आवाज़ ऊँची उठती है। हवा के कारण दीया बुझ जाती है। प्रकाश कम हो जाता है। हवा चलने की आवाज़ बहुत ऊँची उठती है। जैनी तुरंत उठकर बच्चों को चादर से ओढती है। घुटनों के बल पर खडी होती है। ऊपर हाथ फैलाकर प्रार्थना करती है - "हे भगवान, हमारी रक्षा करो। बेचारे बच्चे रो-रोकर सो गये थे। मेरे पति तो सागर में गये हैं। उनकी रक्षा करें, भगवान!!!" जैनी रोती है।
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03 November, 2009


किरण बेदी : औरत उर्फ ज्वालामुखी
डॉ. किरण बेदी भारतीय पुलीस सेवा की प्रथम वरिष्ठ महिला अधिकारी हैं। उन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए अपनी कार्य-कुशलता का परिचय दिया है। वे संयुक्त आयुक्त पुलिस प्रशिक्षण तथा दिल्ली पुलीस स्पेशल आयुक्त (खुफिया) के पद पर कार्य कर चुकी हैं। इस समय वे संयुक राष्ट्र संघ के ‘शांति स्थापना ऑपरेशन’ विभाग में नागरिक पुलिस सलाहकार’ के पद पर कार्यरत हैं। उन्हें वर्ष 2002 के लिए भारत की ‘सबसे प्रशंसित महिला’ चुनी गयीं।डॉ. बेदी का जन्म सन् 1949 में पंजाब के अमृतसर शहर में हुआ। वे श्रीमती प्रेमलता तथा श्री प्रकाश लाल पेशावरिया की चार पुत्रियों में से दूसरी पुत्री हैं। उन्होंने अमृतसर के सेक्रड हार्ट कोन्वेन्ट विद्यालय में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त किया। वहाँ उन्होंने नाशनल केडट कोरप्स में भर्ती हुई। वे बचपन में टेन्नीस की खिलाडी भी रही थी। सन 1968 में अमृतसर के सरकारी महिला कालिज से उन्होंने अंग्रेज़ी में स्नातक की उपाधी प्राप्त की। सन 1970 को उन्होंने पंजाब विश्व विद्यालय से राजनीतिक शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधी प्राप्त की, जिसमें वे प्रथम आयी थी।सन 1972 में श्री ब्रिज बेदी से उनकी शादी हुई। उसी साल में उन्होंने अपनी सेवा भारतीय पुलीस में शुरू किया था।
सम्मान एवं पुरस्कार
उनके मानवीय एवं निडर दृष्टिकोण ने पुलिस कार्यप्रणाली एवं जेल सुधारों के लिए अनेक आधुनिक आयाम जुटाने में महत्वपूर्ण योगदान किया है। निःस्वार्थ कर्त्तव्यपरायणता के लिए उन्हें शौर्य पुरस्कार मिलने के अलावा अनेक कार्यों को सारी दुनिया में मान्यता मिली है जिसके परिणामस्वरूप एशिया का नोबेल पुरस्कार कहा जाने वाला रमन मैगसेसे पुरस्कार से उन्हें प्रदान किया गया। उनको मिलने वाले अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की श्रृंखला में शामिल हैं - जर्मन फाउंडे्शन का जोसफ ब्यूज पुरस्कार, नार्वे के संगठन इंटशनेशनल ऑर्गेनाजेशन ऑफ गुड टेम्पलर्स का ड्रग प्रिवेंशन एवं कंट्रोल के लिए दिया जाने वाला एशिया रीजन एवार्ड जून 2001 में प्राप्त अमेरीकी मॉरीसन-टॉम निटकॉक पुरस्कार तथा इटली का ‘वूमन ऑफ द इयर 2002’ पुरस्कार।उन्होंने दो सेवा संस्थाओं की स्थापना की हैं। सन 1988 में स्थापित नव ज्योति एवं सन 1994 में स्थापित इंडिया विजन फाउंडेशन। ये संस्थाएं रोज़ाना हजारों गरीब बेसहारा बच्चों तक पहुँचकर उन्हें प्राथमिक शिक्षा तथा स्त्रियों को प्रौढ़ शिक्षा उपलब्ध कराती है। ‘नव ज्योति संस्था’ नशामुक्ति के लिए इलाज करने के साथ-साथ झुग्गी बस्तियों, ग्रामीण क्षेत्रों में तथा जेल के अंदर महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण और परामर्श भी उपलब्ध कराती है। डॉ. बेदी तथा उनकी संस्थाओं को आज अंतर्राष्ट्रीय पहचान तथा स्वीकार्यता प्राप्त है। नशे की रोकथाम के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा किया गया ‘सर्ज साटिरोफ मेमोरियल अवार्ड’ इसका ताज़ा प्रमाण है। उनकी आत्मकथा 'I Dare. It's Always Possible' सन 1998 में प्रकाशित हुआ था। सन 2007 में उन्होंने सेवानिवृत्ती ली।
प्रमुख पद :
दिल्ली यातायात पुलिस प्रमुखनारकोटिक्स कंट्रोल ब्युरोडिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलीस, मिजोरमइंस्पेक्टर जनरल ऑफ प्रिज़न, तिहाड़स्पेशल सेक्रेटेरी टू लेफ्टीलेन्ट गवरनर, दिल्लीइंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलीस, चंडीगढ़जाइंट कमिश्नर ऑफ पुलीस ट्रेनीगस्पेशल कमिश्नर ऑफ पुलीस इंटेलिजेन्सयू.एन. सिविलियन पुलीस एड्वाइजरमहानिदेशक, होम गार्ड और नागरिक रक्षामहानिदेशक, पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो
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कक्षा 8 - अर्ध वार्षिक परीक्षा 2009 - कुछ छात्रोपयोगी बातें :
राजू और पडोसिन के बीच का वार्तालाप।
(राजू स्कूल से आता है, घर का दरवाज़ा बंद देखकर)राजू : माँ, माँ, दरवाज़ा खोलोना।(पडोसिन आती है।)पडोसिन : अरे, राजू बेटा, स्कूल से आ गया क्या?राजू : अरे मौसीजी, नमस्ते। मेरी माँ कहाँ है ?पडोसिन : वे सब तो अस्पताल गये हैं। बेटा, तुम मेरे साथ आओ।राजू : अस्पताल ? क्यों ? क्या हुआ ?पडोसिन : अरे बेटा, खबराने की कोई बात नहीं। तेरे भाई को ज़रा सी चोट लगी है। डाक्टर से मिलने गये हैं। राजू : मौसीजी, क्या हुआ मेरे भैया को ? कैसे चोट लगी ?पडोसिन : बाहर से सडक पार कर रहा था ना, एक सैकिलवाले से टकराया। चोट कुछ ज़्यादा नहीँ है। बस, आते ही होंगे।राजू : मुझे अभी मेरे भैया से मिलना है। वे कौन से अस्पताल गये हैं ?पडोसिन : वह सरकारी अस्पताल है ना, वहीं। तू पहले चाय तो पीके जा।राजू : नहीं मौसीजी, फिर कभी पी लूँगा, मैं अभी अस्पताल जाऊँगा।पडोसिन : अच्छा बेटा, ज़रा संभालकर जाना।


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22 October, 2009

आज का कमाल देखना चाहेंगे?
ज़रा क्लिक करें ।
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16 October, 2009

विश्व खाद्य दिवस - 16 अक्तूबर , 2009
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11 October, 2009

कुँवर नारायन जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।41 वाँ ज्ञानपीठ पुरस्कार हिंदी के प्रमुख कवि कुँवर नारायन जी को दिल्ली में हमारे रष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटील ने पिछ्ले मँगलवार को प्रदान किया। सँसद के पुस्तकालय के बालयोगी मंच में यह कार्य संपन्न हुआ।कुँवर नारायन जी का जन्म 19 सितंबर, 1927 को हुआ था। अब वे अपनी पत्नी और पुत्र के साथ दिल्ली में रहते हैं ।
उनकी कुछ रचनाएँ :-
चक्रव्यूह (1956)तीसरा सप्तक (1959)परिवेश : हम - तुम (1961)आत्मजयी (1965)आकारों के आसपास (1973)अप्ने सामने (1979)कोई दूसरा नहीं (1993)आज और आज से पहले (1998)मेरे साक्षात्कार (1999)इन दिनों (2002)साहित्य के कुछ अंतर - विषयक संदर्भ (2003)वाजश्रवा के बहाने (2008)
भारत ने इस महान रचनाकार को इन पुरस्कारों से सम्मानित किया है:-
'आत्मजयी' के लिए हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार (1971)'आकारों के आसपास ' के लिए प्रेमचंद पुरस्कार (1973)'अपने सामने' के लिए कुमारनाशान पुरस्कार (1982) और तुलसी पुरस्कार (1982)हिंदी संस्थान पुरस्कार(1987)'कोई दूसरा नहीं' के लिए व्यास पुरस्कार (1995), भवानी प्रसाद मिश्रा पुरस्कार (1995), शतदल पुरस्कार (1995) और साहित्य अकदमी पुरस्कार (1995)लोहिया पुरस्कार (2001)कबीर पुरस्कार (2001)शलाका पुरस्कार (2006)और अब ज्ञानपीठ पुरस्कार (2008)
आईए उनकी एक कविता पढें :-
क्या वह नहीं होगा ??
क्या फिर वही होगाजिसका हमें डर है ?क्या वह नहीं होगाजिसकी हमें आशा थी ?
क्या हम उसी तरह बिकते रहेंगेबाज़ारों मेंअपनी मूर्खताओं के गुलाम ?
क्या वे खरीद ले जाएँगेहमारे बच्चों के दूर देशों मेंअपना भविष्य बनवाने के लिए ?
क्या वे फिर हमसे उसी तरहलूट ले जाएँगे हमारा सोनाहमें दिखलाकर काँच के चमकते टुकडे ?
और हम क्या इसी तरहपीढी - दर - पीढीउन्हें गर्व से दिखाते रहेंगेअपनी प्राचीनताओं के खंडहरअपने मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे ?
(कविता का मलयालम रूप देखने के लिए चित्र पर क्लिक करें।)
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06 October, 2009

जंगली जीव सप्ताह (अक्तूबर 2 से अक्तूबर 9 तक)हर अक्तूबर के पहले हफ़्ते हम जंगली जीवों की संरक्षण के लिए मनाते हैं। वे जानवर और वनस्पति जो मानव नहीं पालते या खेती नहीं करते उनको ही हम जंगली जीव कहते हैं। इसके बारे में जानकारी प्राप्त करना और उनके सहारे ही मानव की सुरक्षा हो सकती है, यह बोध होने के लिए ही हम इस प्रकार का एक हफ्ता मनाते आ रहे हैं। सिर्फ जंगलों में ही नहीं, हमारे घरों में और हमारे आस-पास कई ऐसे जानवर रहते है, जिसे हम ज़्यादा ध्यान नहीं देते। गिलहरी, चूहा, मेंढक, नेवला, मगर, अनेक प्रकार के साँप, तितलियाँ, सुअर आदि हमारे आस-पास दिखाई देनेवाले ऐसे जानवर है, जिन्हें हम बिना कोई कारण के नाश करते हैं। ये बेचारे जानवर के मुख्य प्रश्न क्या क्या हैं, उनका संरक्षण कैसे करें, इस के लिए हमारे देश के नियम क्या क्या हैं आदि बातों की जानकारी छात्रों को देने के लिए ही हम ऐसा एक प्रमुख हफ्ता मनाते आ रहे हैं।
जंगली जीव सप्ताह की प्रतिज्ञा
केरल के जंगल, नदियाँ, जंगली जीव आदि सब हमारी संपत्ती है, स्थिरता है, अभिमान है। ये सब आनेवाली पीढियों का हक हैं। इनको बिगाडने के लिए हम किसी भी शक्ती को मौका नहीं देंगे। हम इस धरती पर हाथ रखकर प्रतिज्ञा करते हैं कि अपने देश के जंगल, जलस्रोत और हरीतिमा को कायम रखेंगे।जंगल के पहरेदार हम ही हैं।जंगल के पहरेदार हम ही हैं।जंगल के पहरेदार हम ही हैं।
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नवंबर 15, निश्शब्द घाटी दिन
चलो, इस दिव्य अपूर्वता का संरक्षण करें।

बाल दिवस
चाचाजी का जन्मदिन

गजानन माधव मुक्तिबोध
जन्म : 13 नवंबर 1917निधन :11 सितंबर 1964ज़िन्दगी में जो कुछ है, जो भी हैसहर्ष स्वीकारा है;इसलिए कि जो कुछ भी मेरा हैवह तुम्हें प्यारा है।

देशीय पंछी निगरानी दिन (12 नवंबर)
डा सलीम अली जन्मदिन